Kinnar Kailash Trek
किन्नर कैलाश महादेव
किन्नर कैलाश का भगवत गीता में वर्णन
किन्नर कैलाश जो पुरणो में भी वर्णिंत है भगवत गीता में भी इस से बहुत महत्व दिया गया है जिसके अंदर भगवान श्री कृष्ण ने हिमालय पर्वत को अपना घर बताते हुए हैं कहां है कि मेरा निवास पर्वतों के राजा हिमालय में है' किन्नर कैलाश पर्वत पुरानी कथाओं में भी बहुत महत्व रखता है किन्नर कैलाश पर्वत श्रृंखला एक उद्गम स्थल है जहां से हमारी पवित्र गंगा नदी का उद्गम होता है
किन्नर कैलाश की मान्यताएं
किन्नर कैलाश के बारे में वैसे तो कई मान्यताएं प्रचलित है परंतु कुछ विद्वानों के अनुसार कहा जाता है कि महाभारत काल में किन्नर कैलाश पर्वत का नाम इंद्रकील पर्वत था जहां भगवान शंकर और अर्जुन का युद्ध हुआ था और भगवान शंकर ने अर्जुन से प्रसन्न होकर उसे पशुपाता अस्त्र प्रदान किया था और यह भी कहा जाता हैं महाभारत काल में किन्नर कैलाश को वाणासूर कैलाश भी कहा जाता था कियोकि वाणासूर
शोणितपुर नगरी का शासक था और महादेव का भक्त था वह महादेव की तपस्या करने किन्नर कैलाश आया करता था इससे पहले यह किन्नौर के शासक कामरू का मंत्री था शोनितपुर नगरी को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है और अब शोणितपुर नगरी का नाम सराहन बुशहर है यह भी मान्यता है कि पांडवों ने अपने वनवास काल का अंतिम समय यहीं गुज़रा था।
किन्नर कैलाश पर्वत श्रृंखला
किन्नर कैलाश के शिवलिंग के चारो और परिक्रमा करने की इच्छा से भारी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं हिमालय अनेक तरह के एडवेंचर के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। अगर धर्म की दृष्िट से देखा जाए तो यह बौद्ध और सिक्ख धर्मों के लिए भी बहुत महत्पूर्ण है। किन्नर कैलाश की एक एक खासियत यह भी है कि इस घाटी में 300 से भी ज्यादा मंदिर बने हुए हैं इसलिए ये घाटी बहुत महत्व रखती है किनर कैलाश महादेव की एक विशेषता यह भी है कि यह दिन में कई बार रंग बदलता है सूर्योदय से पहले यह थोड़ा सफेद रंग का और सूर्योदय होने के बाद थोड़ा पीला और शाम के वक़्त थोड़ा लाल होने लगता है। ऐसा क्यों है इसका रहस्य कोई भी सुलझा नहीं पाया है।
1993 में शुरू हुई किन्नर कैलाश यात्रा
पोराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि 1993 से पहले किन्नर कैलाश यात्रा निषेद हुआ करती थी यहां पर किसी का भी आना जाना मना था किंतु 1993 के बाद किन्नर कैलाश को पर्यटको के लिए खोल दिया तभी से यहां भारी संख्या में पर्यटक दूर दूर महादेव के दर्शन करने आते है यह यात्रा पे आने वाले पर्यटको के लिए एक चुनौतपूर्ण ट्रैक है जिसे यात्री बहुत मश्कत से पूरा करते है। इस यात्रा का आयोजन हर साल अगस्त महीने में किया जाता हैं।
किन्नर कैलाश की यात्रा
यात्रियों को सबसे पहले इंडों तिब्बत बार्डर पुलिस (आइ.टी.बी .पी) पोस्ट पर यात्रा के लिए अपना पंजीकरण
करना होता है जो कि किन्नौर जिले से 41की0मी0 की दूरी पर स्थित है इसके बाद आपको चारंग गांव के लिए निकलना पड़ता है जिसमें आपको 8 से 9 घण्टे तक का समय भी लग सकता है आपको वहां स्वस्थ्य विभाग का गेस्ट हाउस बना हुआ मिलेगा इसके बाद आपको लालनती के लिए जाना पड़ेगा जिसमें आपको 7 घंटे तक का समय लग जाएगा। किन्नर कैलाश पर स्थित शिवलिंग जिसका श्रद्धालू परिक्रमा करते है उसके उसकी शुरुआत कल्पा और त्रिउंग घाटी से होती हैं और उसके बाद दोबारा कल्पा से होते हुए सांगला घाटी की ओर मुड़ती है
यात्रा के पड़ाव
किन्नर कैलाश जाने के 2 मार्ग है पहला लालांती दर्रा 14,501 फीट की उंचाई पर स्थित है और दूसरा रास्ता चारांग दर्रा है जो 17,218 फीट की ऊंचाई पर स्थित है यात्रा के पड़ाव पार्वती कुंड का बहुत महत्व है इस ट्रैक में आपको तीखे चट्टान का ओर तेज तर्रार झरनों का सामना भी करना पड़ता है कुछ ही दूरी पर आप मंत्र मुगद करने वाले पहाड़ दिखाई देंगे ओर बदलो कि खूसूरती नजर आयेगी वो नज़ारा देख कर आप थकान रहित महसूस करेगें । उसके बाद आप गणेश पार्क पहुंच जाएंगे।
गणेश पार्क में रहने की पूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं यहां का ठंडा मौसम आपको माइनस (-) में मिलेगा इसलिए आपको वस्त्रो का विशेष ध्यान रखना होगा। गणेश पार्क से 500मी की दूरी पर पार्वती कुंड है और पार्वती कुंड से किन्नर कैलाश के लिए 2 घंटे का समय लगता है गणेश पार्क के बाद हम गणेश गुफा के दर्शन करते है पार्वती कुंड यात्रियों के लिए बहूत पुजनिय स्थल माना जाता है मानयता यह भी है कि भक्त अपनी यात्रा पुर्ण करने के लिए इस कुंड में सीक्का डालते है और यहां स्नान करने के बाद ही किन्नर कैलाश के लिए प्रस्थान करते है। और किन्नर कैलाश पहुंच कर महादेव के दर्शन करते है। इस चड़ाई को पूरा करने में 2 दिन का समय निकाल जाता है हालाकि कुछ लोग इस ट्रैक को 1 दिन में भी पूरा करते है। किन्नर कैलाश जाने के 2 मार्ग है पहला लालांती दर्रा 14,501 फीट की उंचाई पर स्थित है और दूसरा रास्ता चारांग दर्रा है जो 17,218 फीट की ऊंचाई पर स्थित है
कैसे पहुंचे
शिमला में आपको बस और टैक्सी दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं आप चाहो तो बस द्वारा और चाहो तो टैक्सी के द्वारा भी
यात्रा का आनंद ले सकते है शिमला से किन्नर कैलाश तक का मार्ग आपको शिमला के बाद का स्टेशन कुफरी मिलेगा आप चाहो तो वहां ठहर के ठंडे मौसम का आनंद भी ले सकते हैं। उसके बाद आपको ठियोग स्टेशन मिलेगा और फिर नारकंडा से होकर आप रामपुर के लिए रवाना होंगे आप चाहो तो एक शाम वहां गुजार सकते है आप 8 घंटों के सफ़र में बहुत थकान महसूस करेंगे जिससे आप यहां कुछ समय थहर कर भी आराम कर सकते हो इसके बाद आपको ज्यूरी पहुंच जाएंगे और जयुरी पहुंचने के बाद आप चाहो तो किन्नौर के प्रवेश द्वार सराहन बुशहर भी जा सकते है उसके बाद आप त्रंडा ढांक में रुकेंगे पर वहा माता चित्रलेखा के दर्शन प्राप्त कर आगे बढ़ेंगे और आप चौरा चेक पोस्ट पे रुकेंगे और उसके बाद आप बावानगर पहुंचते है उसके बाद वांगतु उसके बाद और फिर रिकांगपिओ पहुंचेंगे
साथ ले जाने की आश्यकता
आपको अपने साथ गरम कपड़े और अच्छे ग्रीप वाले जूते और तंबू ओर कम्बल, गुलोकोज, पॉवर बैंक, टॉर्च,डंडा,पानी की बोतल, खाना खाने के लिए चीजें लेकर जानी पड़ेगी आमतौर पर यात्रा शुरू होने पर तीर्थयात्रियों के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती है कुछ ख़रीद के करनी पड़ती हैं
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