Kamro fort

कामरू किला किन्नौर जिले  का सबसे ऐतिहासिक किला है यह किन्नौर जिला में सांगला से 1की0 मी0  की दूरी पर टुकपा घाटी में कामरू गांव  में स्थित है  जिसे यहां के लोग मोने भी कहते है। यह किला समंद्र तल से लगभग 2600मी की उंचाई पर स्थित है। देवदार की लकड़ी और पत्थरो  से बना यह किला 1100साल पुराना बताया जाता हैं।  किले का पहला द्वार लकड़ी का बना हुआ है जिस पे खूबसूरत नकाक्षी की गई है इस किले के मुख्य द्वार पर भगवान बुद्ध की एक प्रतिमा  बनाई गई है जो पर्यटको का स्वागत करती है   और  किले के प्रांगण में मां कामाख्या देवी जी का मंदिर भी है जिसे  लोगों के दर्शन के लिए बनाया गया है यह किला पत्थरो और लकड़ी  के साथ बना सात मंजिला भवन हैं।  किले के एक तरफ देवदार के पेड़ों का खूबसूरत नजारा हैं। और दूसरी तरफ उंचे - ऊंचे पर्वत का नज़ारा हैं 




कामरू किले का इतिहास 
    कामरू किले का इतिहास बुशहर राजवंश से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि यह किला 1100साल पुराना है।साथ ही में किले के अंदर एक मंदिर है और है जिन्हे बद्रीनाथ मंदिर कहा जाता है इस मंदिर का इतिहास 15वी सदी का बताया जाता हैं।  इस मंदिर का इतिहास 15वीं सदी का बताया जाता है  यहां की अद्भुत बात यह है कि  इस  किले को सात गाँव ने मिल कर बनाया है किला बनाने वाले सात  गांव - छितकुल, सांगला, बट्सेरी, शोंग, रक्छम,चासू, कामरू इतियादी  हैं  यह बुशहर राजवंश का मूल बैठक  है जो यहां से शासन्  करती थी। यह हजारों सालों पहले भगवान बद्रीनाथ जी द्वारा बनाया गया था किले के अंदर लगभग 33 करोड़ देवी देवताओं का स्थान है कमरू बुशहर  रियासत की राजधानी है  जिस के संस्थापक श्री कृष्ण के पौत्र प्रद्युम्न है  ऐसा माना जाता है कि बुशहर रियासत के जितने भी राजा थे उन सभी का राजतिलक इसी किले में किया जाता  था जिनकी की संख्या  121 बताई जाती है कहा जाता है कि 121  रजाओं का राज तिलक इसी किले में हुआ है यह किला 121 राजाओं के इतिहास को खुद में समेटे खड़ा है इस धरोहर को संजोकर रखने के लिए इस किले को हम शत शत नमन करते है।




 मां कामाख्या देवी का इतिहास
        मां कामाख्या देवी जी को मां कामाक्षी देवी भी कहा जाता है।  स्थानीय लोगों द्वारा कहा जाता है कि मां कामाख्या देवी असम गुवाहाटी से लाई गई है    जिन्हे पर्यटकों के दर्शन के लिए लाया गया है किले का पहला द्वार पे बेहद सुंदर कलाकृति की गई है और दूसरे द्वार पर से खूसूरत नकशी  की गई है
क्योंकि पुराने परंपरा के अनुसार किले में जो भी व्यक्ति  प्रवेश करते हैं उन्हें  कमर  पर कमरबन्द (जिसे पहाड़ में गाचि कहा जाता है) और सिर पर टोपी पहन कर प्रवेश करना पड़ता है  यो यहां की पुरानी परंपरा है जो अभी तक निभाई जाती है हर साल यहां देवी के सम्मान के लिए एक बड़ा त्योहार आयोजित किया जाता है 
  


यात्रा का अच्छा समय
 कमरू किले के दर्शन का सबसे अच्छा समय अप्रैल से सितंबर के बीच का समय अच्छा रहता है। सर्दियों में यहां काफी ठंड होती है और बर्फ के आसार भी बहुत होते हैं। जिस वजह से आपको कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है

 खाने की सुविधा
    यहां बोध धर्म के लोगो का बड़ा आग़ज़ है इसीलिए यहां 
उत्तर  भारतीय व्यंजनों का बड़ा महत्व है। यहां ज्यादा तर लोग तिब्बति व्यंजन खाना पसंद करते है इसलिए  यहां ढाबो में तिब्बती व्यंजन जैसे थुकपा, मॉमोज, चौमिन, पकोड़ी इतियादी 
उपलब्ध है 




कैसे पहुंचे
 आप कमरू किले तक बस या टैक्सी के माध्यम से भी आ सकते हैं आप अगर बस या टैक्सी के माध्यम से यात्रा करने चाहते हो तो  आपको दिल्ली, चण्डीगढ़,शिमला से आसानी से सांगला के लिए मिल जाएगी। 
 

नज़दिकी हवाई अड्डा
 सांगला में कोई हवाई अड्डा नहीं है। जुब्बलहट्टी हवाई अड्डा यहां का सबसे नजदीकी हवाईअड्डा है जो कि लगभग 238की0मी0 की दूरी पर है।











  












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