jwalamukhi temple in himachal
ज्वालामुखी, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल में कहीं भी जागरण होता है तो भक्त जन उस जागरण की ज्योती ज्वाला माता के मंदिर से ले कर जाते है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार
मंदिर का निर्माण
देवी दुर्गा के एक महान भक्त, कांगड़ा के राजा भूमि चंद कटोच ने पवित्र स्थान का सपना हुआ था और राजा ने लोगों को इस जगह का पता लगाने के लिए निर्धारित किया था। जगह का पता लगाया गया और राजा ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया। जो की जवालमुखी मंदिर के नाम से जाना जाता है
अकबर और ध्यानु भक्त की कहानी
मान्यताओं के अनुसार, सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला। ध्यानू देवी का परम भक्त था। ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा। अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही नौ ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा। पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ। फिर अकबर ने अपने सैनिको को ज्योतियो के ऊपर त्वा रखने को कहा जैसे उन्होंने जोय्तियो के ऊपर त्वा रखा तो ज्योतिया तवे को चीरती हुई बाहर आ गयी ये त्वा आज भी इस मंदिर में देखा जा सकता है
यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं। ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया। तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया।
यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया। कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अन्य धातु में बदल गया था। वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है।
गोरख डिब्बी
ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। मंदिर के पास ही 'गोरख डिब्बी' है। यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता है जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है। गोरख डिब्बी में उपस्थित साधु उस कुंड को धुप दिखाते है। और आज भी वहां ज्वाला माता दर्शन देती है और कुंड का पानी ठंडा रहता है
पौराणिक मान्यता के अनुसार
एक बार गुरु गोरखनाथ जी तपास्या के लिऐ ज्वाला जी पीठ गए, जब ज्वाला माता ने नाथो के महान गुरु गोरखनाथ जी को अपने स्थान पर तपस्या करते हुऐ देखा तो ज्वाला माता को काफी प्रसन्नता हुई तो उन्होने गुरु गोरखनाथ जी से उनके यहाँ भोजन खाने का अनुरोध किया लेकिन गुरु गोरखनाथ जी ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया, ज्वाला माता ने काफी जिद की कि वे उन्हें भोजन करवाना चहाती हैँ, अखिर कार गुरु गोरखनाथ जी ने नथता स्विकार कर लिया, लेकिन उन्होने शर्ते रखीं कि भोजन मे वहा सिर्फ खिचड़ी खाना चहाते हैँ जिसे आप खुद अपने हाथो से बनाना और हाँ ये खिचड़ी जल्दी से बनाई जाये हमे यहा से शिध्र जाना हैँ, फिर गुरु गोरखनाथ जे ने कहा कि हम गॉव जा के खिचड़ी के लिऐ चवल और दाल मांग के लाते है। तब तक आप खिचड़ी को बनाने के लिए जल कुंड को गर्म करे जब कुंड का जल गर्म हो जयेगा तब मेँ यहा प्रकट हो जाऊगा, गुरु गोरखनाथ इतना कह के वहा से चल दिए फिर माता माता गुरु जी कहे अनुसार इस जल कुंड के चारो ओर ज्वालाऐँ प्रकट कर दी जिसके फलस्वरुप जल जल्दी गर्म होने लगा लेकिन चमात्कार देखिऐ देखने पर जल उबलता हुऐ प्रतित हो रहा था और हाथ लगाने पर ठंडा लग रहा था , जल गर्म नहीं हुआ उस बजह से गोरख नाथ जी आज तक लोट कर नहीं आये , आज भी ये स्थान ज्वाला जी पीठ मे मौजुद है इस स्थान को "गोरख डिब्बी" के नाम से जाना जाता हैँ,
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें