bhimakali temple sarahan




भीमाकाली काली मंदिर हिमाचल प्रदेश के राजधानी शिमला के सराहन में बसा हुआ है यह मंदिर रामपुर बुशहर से करीब 30की0मी की दूरी पर है और शिमला से यही मंदिर 180कि0मी दूर है। इस मंदिर की कलाकृति किसी का भी मन मोह लेती है यह एक प्राचीन भारतीय दरोहर है इस मंदिर का  वातावरण मन को  शांति प्रदान करता है यह मंदिर यहां 800साल पुराना बताया जाता है। मां भीमकाली  पूर्ण बुशहर राज्य के  शासक की देवी है यह समन्द्र तल से 2400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भीमकाली मंदिर हिन्नदुओ के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता हैं सराहन बुशहर का पुराना नाम शोणितपुर था माना जाता है कि यह पहाड़ कभी पृथ्वी से 20की0मी  नीचे था और यहां चारो और पानी था। हिमाचल का यह धर्मस्थल अति प्रिय है। यहां माता के दर्शन करने लोग दूर दूर से आया करते है यह अनोखा  मंदिर  सुंदरता ओर पुरानी संस्कृति का प्रतिक है।

 

 मां का नाम भीमाकाली कैसे पड़ा

  हिमाचल प्रदेश 1996 में भीम राज्य बना था। और तब यहां महेश्वर देवता मंदिर की स्थाई प्रति कृति बनाई गई थी मां ने यहां भीम का रूप धारण कर राक्षसों का वध किया था तब से मां भीमाकाली  के नाम से जानी जाती हैं। मां भीमाकाली  देवी पूर्व बुशहर राज्य के शासकों की देवी भी मानी जाती है


  पौराणिक कथा 

   पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती की देह को शिव जब कैलाश लेकर जा रहे थे तब विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से प्रहार किया जिसे माता  के शव के 51 टुकड़े हो गए उन टुकड़ों में से  माता का बायां कान इस स्थान पर गिरा था तभी से यह 51 शक्तिपीठो ओर पवित्र स्थलों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है।


   मंदिर की कहानी 

    इस मंदिर की कहानी यह भी है कि सन् 1905 में यहां एक  भूकंप आया था जिसे की यह एक तरफ से झुक गया था और स्थानीय लोगो का यह भी कहना है कि उसके बाद में फिर कभी भूकंप आने से यह अपने आप ही ठीक भी हो गया था इसे  माता का चमत्कार  भी माना जाता है।लोक मान्यता है कि जिस समय  बुशहर के राजा विजय सिंह और बीज सिंह का कुल्लू के राजा से युद्ध हुआ था जिसमें की कुल्लू का राजा मारा गया।कुल्लू का राजा युद्ध के समय  रघुनाथ जी की एक चोटी सी प्रतिमा अपने साथ रखता था। उस प्रतिमा को बुशहर के राजा अपने साथ ले आए और भीमाकाली मंदिर परिसर  में  स्थापित कर दिया था तभी से यहां पर दशहरा भी मनाया जाता है
 

    मंदिर की कलाकृति 

   इस मंदिर की वास्तुकला और शिल्पकला अन्य हिन्दू मंदिरों  से भिन्न दिखाई देती हैं यह मंदिर हिन्दू और बौद्ध स्थापत्य कला शैली का एक मिश्रण है। इस मंदिर को बनाने के लिए   तिब्बती शैली कि नकाशी  और मसाले आदि का भी प्रयोग किया गया है मंदिर की सुंदरता आपको दूर से  ही देखी जा  सकती हैं 

   मंदिर का भवन

  मंदिर के भवन से आप पहाड़ों की ओर मंदिर की खूबसुरती  को  निहारा जा सकता है यहां चारो ओर की खूसूरती ओर इस मंदिर की कलाकृति आपका मनमोह लेगी। मंदिर के सामने वाली पहाड़ों पर श्रीखंड महादेव केलाश का एक  खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है इस मंदिर के करीब ही एक जंगल है जाहां चिड़िया घर है जहां अनेक प्रकार के  पक्षी देखे जा सकते है

     मंदिर के अंदर का दृश्य

   मंदिर परिसर के भीतर एक नया मंदिर 1943 में बनाया गया था  मंदिर परिसर में  भेरो ओर नरसिंह मंदिर और रघुनाथ मंदिर भी है और माता को  समर्पित दो अन्य  मंदिर भी है माना जाता है कि   मंदिर में देवी भीमाकाली  की एक मूर्ति को एक कुंवारी और एक ओरत के रूप में चिन्हित किया है। मंदिर की आखरी  मंजिल में माता का खजाना भी है जहां जाने की   अनुमति राजा वीरभद्र के सिवा अन्य किसी को भी  नहीं दी जाती है 
 

    कुछ अनूठी पुरानी कड़ियां

    इससे पहले हिमाचल प्रदेश  1996 में थीम राज्य बना था। इनमें एक स्थाई द्वार हिमाचल  प्रदेश की यह मंदिर करीब 1000 या 2000 वर्ष पुराना भी माना जाता हैं इस मंदिर की शेल भी अंत्यंत पुरानी है  महाभारत के अनुसार  पांच पांडवो ने पैदल यात्रा कर  यहां मां भीमकाली के दर्शन किए थे।ओर ये भी कहा जाता है कि  श्री कृष्ण ने भी यहां वाणासुर का वध किया था और यह भी कहा जाता है कि यह राज्य बहुत समय पहले सोने का राज्य हुआ करता था। तब से सराहन  का नाम शोणितपुर हुआ और शोणितपुर  का राजा उस समय वाणासुर  था । वाणासुर देत्यकुल में जन्मा भक्त प्रहलाद के पौत्र दानवीर राजा बली का जेष्ट्ठ पुत्र था जिसकी हजार भुजाएं थी जो पराक्रम और साहस से भरपूर था
श्री कृष्ण के साथ युद्ध में वाणासुर की केवल 4 ही बुजाए रह शेष रह गई थी वाणासुर किन्नौर ( जो की पहले कैलाश के के रूप में जाना जाता था) में जा कर  आराधना किया करता था यही वीर सतलुज को मानसरोवर से इस ओर लाया था।इससे पहले यह  किन्नौर के शासक कामरू का मंत्री भी था  इसकी एक पुत्री उषा ओर एक सहेली चित्रलेखा भी थी । जो कि किन्नौर जिले में स्थित नीचार गांव में पूजी जाती है और चित्रलेखा का मंदिर भी किन्नौर के त्रांडा डांक में स्थित है।
 ये स्थान अंत्यंत महत्वपूर्ण है मंदिर के भीतर एक बहुत पुरानी गुफा भी है माना जाता है कि इस गुफा को किसी ने बनाया नहीं था यह गुफा 1000मी लंबी है  यहां कुछ  वर्षों पहले बहुत बर्फ पड़ा करती थी तब राविं गांव जो  की पंडितो (ब्राह्मण) का गांव है वहां से लोग उस गुफा के माध्यम से यहां पूजा करने आया करते थे हालांकि अब यहां इतनी बर्फ नहीं पड़ती है  आप अभी भी ये गुफा यहां देखी जा सकती हैं।

  मनुष्य की बली

    पौराणिक मा्यताओं के अनुसार यहां बहुत वर्षो पहले हर 10 साल में नर बली भी दी जाती थी। इस प्रथा को दलाना गांव के बद्रा ब्रहामण ने जप तप  कर देवी को प्रसन्न किया और इस प्रथा को समाप्त कर देने का वचन लिया बाद में बद्रा ब्रहामण ने
इसी देवी को शाली के टिब्बे पर भी स्थापित किया। 


 पुराणों में वर्णित

   बुशहर रियासत का इतिहास जितना पुराना है इस रियासत का शैल उसे भी पुराना है  महिषासुर, चंड - मुंड, रक्तबीज, शुंभ निशुंभ  देत्य् का संहार करने वाली भीमाकाली  का वर्णन दुर्गा 
 सप्तशती में है कि जब में भीम रूप धारण करके ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए हिमाचल में रहने वाले राक्षसों का भक्षण करूंगी उस वक़्त जब सब ऋषी मुनि भक्तिभाव से जब मेरी पूजा करेंगे  तब में भीमा रूप धारण कर जन्म लूंगी और राक्षसों का भक्षण करूंगी।
 

   रघुनाथ मंदिर 

    रघुनाथ मंदिर  इसी मंदिर के भीतर  स्थापित  है। यह मंदिर सातवीं शताब्दी के मध्य का है ऐसा कहा जाता है कि  बुशहर के राजा विजय सिंह ओर बीज सिंह का कुल्लू के राजा के साथ युद्ध हुआ था जिसमें कुल्लू का राजा मारा गया था। कुल्लू का राजा अपने साथ रघुनाथ जी की मूर्ति रखता था। कुल्लू के राजा के मरने के बाद  राजा विजय सिंह ओर बीज सिंह रघुनाथ जी की मूर्ति को अपने साथ सराहन ले आए  और उनकी स्थापना मंदिर के अंदर कर दी तभी से रघुनाथ मंदिर माता के द्वारपाल के रूप में यहां स्थित है।
 

  नरसिंह मंदिर 

   सराहन बुशहर में नरसिंह मंदिर का बहुत  महत्व  है। इस मंदिर की कोई प्रतिमा नहीं है लकड़ी के खंबो ओर त्रिशूल में ध्वजा बांद रखी है। ऐसा कहा जाता हैं कि बुशहर के राजा जब भी किसी युद्ध में जाते है तो नरसिंह देवता जी को भी साथ ले जाने की परंपरा है। यदि राजा  एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते है तो भी इस प्रतिक चिन्ह को वो साथ ले कर जाते है


 सराहन बुशहर

  सराहन बुशहर का पुराना नाम शोणितपुर था यह पहले  किन्नौर(कामरु) तक फैला हुआ था। सरहान बुशहर देखने में एक छोटा सा गांव लगता है पर यहां का दृश्य  बहुत सुंदर है। यहां पर कुल्लू का  दशहरा  भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है इस दशहरे मे दूर दूर से पर्यटक आते है और देवी देवता का आगमन होता है यहां 11देवता हर साल आते है जिसमें पहला देवता साहिब ब्साहरू, बसाहरा से (2) देवता साहिब लक्ष्मीनारायण किन्नू से (3) देवता साहिब लक्ष्मी नारयण जी मझगांव से (4) देवता साहिब कुंद्रा नाग कुन्नी से (5) देवता साहिब बोंडा नाग बोंडा से (6) देवता साहिब निनसु से (7)देवता साहिब लाटा घानवी से (8)देवता साहिब जघोरी नाग पंद्राह बिश से (9)देवता साहिब लांकड़ा वीर कल्पा जिला किन्नौर से (10) देवी बाड़ी माता जिला  कुल्लू  (11)देवता साहिब डाबरकुंड चाटी जिला कुल्लू


कैसे पहुँचे 

  माता भीमाकाली का मंदिर सरहान में है जो की हिमाचल की राजधानी शिमला से लगभग 180 किमी की दुरी पर स्थीत है।  सराहन सड़क के माद्यम  हुआ है आप सड़क के माध्यम से यहां अपनी गाड़ी या कैब  और परिवहन विभाग  की  बस से पहुंच सकते है आपको दिल्ली चंडीगढ़ , शिमला ,चम्बा , धर्मशाला , हमीरपुर से सीधी बस मिल जाएगी 


निकटतम हवाई अड्डा  शिमला में है।  जहां से आप कैब या बस से यहां पहुंच सकते है  

निकटतम रेलवे स्टेशन भी शिमला में ही है ये नेरौ गेज रेलवे स्टेशन है।  

कहाँ रुके 

सराहन में मंदिर परिसर ठहरने  की भी पूरी सुविधाएं है। और आस पास  छोटे बड़े होटल भी है आप वहां भी रुक सकते है  

                                                    
                                                  धन्यवाद




टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट