shikari kali temple rampur

 शिकारी काली

   शिकारी काली मां का मंदिर देव भूमि में जिला शिमला के रामपुर बुशहर में नोगवेली (जगुनि) की चोटी पर स्थित है मां शिकारी काली  2740 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यहां के नज़ारे ओर माता के चमत्कारों की चर्चा दूर दूर तक की जाती है। पहाड़ों के अनुसार ऊंचाई वाले स्थान पर  जहां पर भी माता विराजमान होती है उस जगह को शिकारी (hights)  कहते हैं

 हिमालय में एक ऐसा मंदिर जहां सिर्फ एक ही काली विराजमान नहीं है।  यह एक ऐसा मंदिर है जहां एक साथ सात कालियां विराजमान है स्थानीय लोगो के अनुसार  ऐसा कहा जाता हैं कि  इस मंदिर में माता का केवल एक ही रूप विराजमान नहीं है यहां माता के साथ सात कालीयां विराजमान है  जो भी यहां  सचे मन से प्रार्थना करता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। 



  आदमखोरो (मावी लोगो) की कहानी

पुरातन काल के अनुसार बहुत से गांव में से एक यह भी  ऐसा गांव हुआ करता था जहां कभी  आदमखोरो  का कहर  हुआ करता था। जो इंसानों का भक्षण करते है। आदमखोर को नरभक्षी और खानाबदोश भी कहा जाता है नर भक्षी एक ऐसा कृत्य या अभ्यास है जिसमें एक इंसान दूसरे इंसान का मांस खाया करता था। और खानाबदोशी का अर्थ वे लोग जिनका कोई स्थाई निवास  नहीं होता और जिसके कारण वे हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं।  इस गांव पर भी इन्हीं आदमखोरों का कहर हुआ करता था। यह लोग पहले जगुंनी की चोटी पर रहा करते थे और गांव  से लोगो का भक्षण करने लगे जब आदमखोरों कहर गांव वालो पर जायदा होने लगा तो लोगो ने आदमखोरों से बचने के लिए जप तप कर  मां काली का आवाहन किया और मां काली ने गांव वालो से प्रसन्न  हो कर आदमखोरों पर हमला किया। मां काली के प्रकोप के डर से आदमखोर शिखर श्रीखंडू की तरफ भाग गए और वहां बस गए  तभी से अब यह स्थान शिकारी मां काली के नाम से जाना जाता है।



 मां शिकारी काली की कहानी

  मां शिकारी काली यहां सदियों से विराजमान है  यह माता यहां केसे आयी इसका कोई लिखित प्रणाम नहीं है। यहां का सारा इतिहास एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा है।इस  मंदिर की कहानी बहुत  रहस्यमई है  गांव के लोगों का कहना था कि उन्हें इस माता के बारे में पता नहीं था तब वह इस चोटी  पर उगने वाले घास को नया घास में बदलने के  लिए जंगल में आग लगा देते थे और जब वह आग माता के स्थान के करीब पहुंचती थी तो माता क्रोधित हो जाती थी और बादल गरजने शुरू हो जाते थे माता के चमत्कार  से घनघोर बारिश हुआ करती थी  जिससे जली हुई आग बुझ जाती थी ऐसा हर वर्ष हुआ करता था फिर गांव के लोगो ने डंसा के गांव के देवता से जब यह पूछा गया कि ऐसा क्यों होता है तो उन्होंने मां शिकारी काली के बारे में गांव वालो को बताया कि मां एक  झाड़ी (कांटे) के नीचे सदियों से  विराजमान है और आप गांव वालो की रक्षा करती है और देवता की बहन है उसके बाद गांव वाले जब इस स्थान पर पहुंचे  तो वहां माता पहले से ही बेखड़ के कांटों के नीचे एक छोटे से पत्थर में विराजमान थी। यदि माता का स्थान यहां से कोई भी बदलने की सोचता था तो गांव पे कोई ना कोई आपदा जरूर आती थी माता को यह स्थान ही अति प्रिय था  तभी से उस स्थान की पूजा होने लगी। और माता का नया मंदिर 2014 में बना था


मंदिर के पड़ाव

  ऐसा माना जाता है कि माता के पूर्ण दर्शन तभी सम्पूर्ण होते है जब आप मां शिकारी काली के साथ साथ हुडल्यू नाग देवता जी के दर्शन भी करते है गांव वालो के अनुसार माना जाता है कि  हुडलू नाग माता के रक्षक है और मा काली का मंदिर  हुडलु नाग देवता जी के सर पर विराजमान है और  हूडलू नाग देवता जी एक विशालकाय नाग है जिनकी  पूंछ जगुनी गांव  के नीचे तक हैं आप चाहो तो वहां से एक ओर ट्रैक पूरा कर सकते हैं जिसका नाम शिखर श्रीखंडू है।
  

शिखर श्री खंडू 

  शिखर श्रीखंडू का ट्रैक दो घंटों का है शिखर महादेव के लिए आप  स्नेही  से एक अलग ट्रैक भी के सकते हो यदि आप मां  शिकारी काली से इस ट्रैक पे जाना चाहते हो तो  आपको यह ट्रैक को पूराआपूरा करने में 3 से 4 घंटे भी लग सकते है। वहां पहुंच कर एक अलग सा ही अनुभव प्राप्त होता आपको वहां पर आदमखोरों के घर और बड़े बड़े पत्थर जो आदमखोर सोने के लिए प्रयोग करते थे उनके कुछ अवशेष देखने को मिलेंगे



मां शिकारी काली का चमत्कार

 पौराणिक कथाओं के अनुसार  गांव में माता के चमत्कारों के बहुत से किस्से सुनाए जाते है उनमें एक कहानी यह भी है कि     माता के मंदिर में जागरण का आयोजन किया गया था जिसमें की  वहां गांव के बहुत सारे लोग शामिल हुए थे आधी रात होते आसमान में अचानक से बिजली चमकने लगी और बिजली से एक जोत उत्पन हुई जो सभी लोगो द्वारा देखी गई   वह जोत मंदिर के भीतर माता के पास  जाकर वहां एक बड़ा सा धमाका हुआ जिसे की सभी लोग बेहोश हो गए थोड़ी ही देर जब सभी लोगो होश आया तो माता ने एक इंसान के अंदर प्रवेश किया और कहने लगी कि मेरे मंदिर में एक सूतक (स्कोड़) वाला परिवार आया है जिसके घर बच्चा जन्म लिया हो  वो यहां से चले जाए और कुछ दिनों बाद आएं कह कर माता चली गई ऐसे कयी प्रत्यक्ष रूप माता ने दृष्याए हुए हैं जिसे माता के चमत्कारों का पता चलता है 14 अगस्त 15अगस्त को यहां एक बड़ा महोत्सव मनाया जाता है जिसमें नागवेली के सभी देवता शामिल होते हैं।
 

मां शिकारी काली तक पहुंचने के दो रास्ते है। 

 पहला रास्ता रामपुर से  की0मी0 दूर एक जगूनि गांव तक है वहां से आपको मा शिकारी की चोटी 90 डिग्री  पे है वहां से आपको 2 घंटे का ट्रैक पड़ता हैं।
  दूसरा रास्ता गांव  सनेई  से  पड़ता है    और वहां से मां शिकारी काली की चोटी एंगल 45 डिग्री पे है। वहां से मा शिकारी पहुंचने में 1 घंटा लगता है 



कैसे पहुंचे-

  आप शिमला से बस या कार द्वार जा सकते है  शिमला से रामपुर की दूरी  126 की0 मी0 दूर  है। और वहां से जगुणी 24की0 मी0 की दूरी पे है। यहां तक सड़क सुविधा उपलब्ध हैं वहां से 2 घंटों का पैदल ट्रैक शुरू होगा शिकारी मां काली मंदिर तक  है



रहने की सुविधा

    मा शिकारी काली के साथ एक कैंपस  बनाया गया है जहां रहने कि पूरी सुविधा प्राप्त है बर्तन ओर पानी की वहां पूरी सुविधाएं उपलब्ध है। आपको आपके  खाने के लिए समान खुद लेकर  के जाना पड़ेगा।

शिखर श्रीखंडू  में रहने की सुविधा

  शिखर श्रीखंडू में रहने की पूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं पर अगर  आप  चाहो तो एक कंबल साथ रखे ओर पानी की वहां दूर दूर तक कोई सुविधा नहीं है पानी आपको 20 लीटर तक अपने साथ ही ले जाना पड़ेगा । खाने के लिए बर्तन आपको वहां मिल जाएंगे पर आपको सामान साथ ले कर जाना पड़ेगा। आप अपने साथ कुछ भी लेकर का सकते है जो भी आप  बनाना और खाना चाहो।

                                                   धन्यवाद ।

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